पता नहीं कब जिंदगी की उठा पठक से आज़ाद हो कर खुद को जी पायूँगा
मन तो कई उड़ान भरने की कल्पनाये करता है . पर जिंदगी की जिम्मेवारी हमेशा पैरो में बेड़ियाँ दाल देती हैं
अकेलेपन का अहसास इतना है की सिर्फ खोकली हँसी और खोकली बाते ही कर के दूसरो को अपना समझने की हर बार भूल कर बैठता हूँ
चलो कल से अब अपने लिए जीते हुये अपनी सोच को शब्दों में उतारने की कोशिश करेंगे।
शाएद इस से ही दिल में जो एक अजीब सा बोझ है ..... कुछ हल्का हो जाए और इसी तरह पता नहीं की जिंदगी का कोई मकसद मिल जाये !
कोशिश यही रहेगी की हमेशा सकारत्मक बातें ही लिखू .
देखते हैं कल क्या रंग दिखाता है मुझको .
एक शेर याद आ रहा है ....
मैं हवा हूँ कौन वतन अपना , ढूड रहा हूँ चमन अपना !
मन तो कई उड़ान भरने की कल्पनाये करता है . पर जिंदगी की जिम्मेवारी हमेशा पैरो में बेड़ियाँ दाल देती हैं
अकेलेपन का अहसास इतना है की सिर्फ खोकली हँसी और खोकली बाते ही कर के दूसरो को अपना समझने की हर बार भूल कर बैठता हूँ
चलो कल से अब अपने लिए जीते हुये अपनी सोच को शब्दों में उतारने की कोशिश करेंगे।
शाएद इस से ही दिल में जो एक अजीब सा बोझ है ..... कुछ हल्का हो जाए और इसी तरह पता नहीं की जिंदगी का कोई मकसद मिल जाये !
कोशिश यही रहेगी की हमेशा सकारत्मक बातें ही लिखू .
देखते हैं कल क्या रंग दिखाता है मुझको .
एक शेर याद आ रहा है ....
मैं हवा हूँ कौन वतन अपना , ढूड रहा हूँ चमन अपना !
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