Saturday 8 September 2012

वो

वैसे तो मैं अपने निजी रिश्तों के बारे में कुछ भी share  करने में विश्वास नहीं रखता पर एक इंसान के साथ मेरा रिश्ता बड़ा ही अलग सा है

सब के लिए वोह मेरी wife /पत्नी है पर मुझे नहीं मालूम की कौन है वोह और क्यूँ है वोह , मेरी जिंदगी में। . हमारे शास्त्रो  में लिखा है की पत्नी ही पुरुष को सम्पूरण बनाती है वोह एक सबसे करीबी दोस्त होती है आपके जीवन में .

जी हाँ , आज  यह मेरा लेख समर्पित है मेरी ASHI  को

कौन है ASHI ? क्या है वोह , सब की नज़र में वोह सिर्फ एक ऐसी आम लड़की है जिसकी शादी एक गुमनाम से शख्स से हुई। जिसका कोई वजूद नहीं है इस इंसानों के जंगल में। पर मेरे लिए वोह अलग है .......

कल उसके साथ जिंदगी बिताते हुए 16 साल पूरे हो जायेंगे और इन 16 सालो में आज तक मुझे उसमे कोई रिश्ता नज़र नहीं आया। मैं उसके और अपने रिश्ते को कोई नाम नहीं देना चाहता।

हमारा रिश्ता तो बस साथ चलने का है। वैसे ही जैसे नदी का रिश्ता लहरों के साथ है। बिना लहरों के नदी का कोई अस्तित्व ही नहीं।

जब Ashi  मेरी जिंदगी में आयी तो जिंदगी बिखरी हुई थी , अपने वजूद के लिए एक  संघर्ष  मे  adjustment के लिए वक़्त ही नहीं मिला। अकेलेपन की परछाई ही सबसे करीब लगती थी।  किसी की भी नज़र में मेरी कोई पहचान नहीं थी और जिंदगी मेरी सबको बोझ लगती थी।

उसके भी अपने सपने और ज़रूरते  रही होगी। एक विश्वास के साथ वोह मेरे घर में आयी होगी की इस पार उसको एक सकून भरी जिंदगी मिलेगी। पर मेरी खुद की जिंदगी में इतनी उथल पथल थी की सारे अरमान पानी में बह गए।

क्या उम्र थी , सिर्फ 24-25 साल की अल्हड उम्र . जब हर कोई एक ख्वाब देखता है खुद के लिए। पर मेरे  साथ सारे खवाब  हो  हवा हो गए खुद के . अगर खवाब बचा तो सिर्फ एक ही खवाब ........ वोह मैं।

मुझे उसने अहसास दिलाया की क्या हुआ अगर ज़मीं पथरीली है , बस चलना है अब , क्या हुआ अकेले हैं, पर  हम दो कभी अकेले नहीं हो सकते , क्या हुआ अगर वक़्त लगेगा जिंदगी को संभालने में , वक़्त की कोई कमी नहीं , क्या हुआ अगर कोई साथ नहीं, हम खुद अपने साथ हैं।

मेरे गुस्से , मेरी frustration , मेरी बेबसी और मेरे  आक्रोश को बखूबी समझा उसने। अगर आज मैं अगर खुद को जी रहा हूँ सिर्फ उसी की वज़ह से। नहीं तो जिंदगी एक रेगिस्तान हो चुकी थी।

मुझे कभी महसूस ही नहीं हुआ की कब वक़्त ने मुझे संभाल लिया।  उसकी मेरे सामने की खामोशी असल में एक संभल बन गई मेरे लिए। एक खामोश इंसान  कैसे जिंदगी को संभालता है , यह मैंने  उससे सीखा। अपनी कोई प्रॉब्लम नहीं share   की मेरे साथ।  बस एक अहसास दिलाती गई की सब ठीक है।  और पता नहीं चला की कब सब ठीक हो गया।   उसकी चुपी  या ख़ामोशी ही तो थी जिसने मेरे अन्दर के आक्रोश को खामोश कर दिया। नहीं तो मेरा आक्रोश और frustration  मुझे कब का तोड  चुका  होता।

उसकी    पलकों के पीछे के सारे सपने जो खुद के लिये  थे उसने अपनी पलकों के पीछे ही   छुपा लिए . मुझ से
या किसी से कोई अपेक्षा  नहीं की। बस उसकी एक ही अपेक्षा थी , मेरे साथ चलना है अब।  कैसा भी   दौर हो ,   हालात हो , बस साथ - साथ जीना है।  मेरा घर कब घर बन गया पता ही नहीं चला। वोह पल कब  बीत गए पता ही नहीं चला।

अंत में बस इतना ही ........ की एक और ऐसी ही  जिंदगी जीने का मन करता है ............






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